बुद्धिमान चायवाला | बेस्ट मोरल स्टोरी इन हिंदी pdf download - MoralStoryHub पर आप सभी पाठको हार्दिक स्वागत है। आशा करते है की आप सभी स्वस्थ एवम सुरक्षित होंगे। आज हम आपके लिए एक बेहतरीन कहानी लेकर आए है जो एक गरीब चायवाले की कहानी है। आगे कहानी में आपको ज्ञान के साथ अच्छा खासा मनोरंजन भी मिलेगा।
हमेशा की तरह जैसे आपको हम प्रत्येक पोस्ट के अंत में आपको एक पीडीएफ फाइल देते है ठीक उसी प्रकार इस पोस्ट में भी आपको एक पीडीएफ फाइल मिलेगी जिसको आपको डाउनलोड कर सकते है। आशा करते है आपको यह स्टोरी पसंद आयेगी।
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सुजातनगर में दिनेश नाम का एक बूढ़ा आदमी अपनी छोटी सी चाय की बेड़ी चलाता था। वह बहुत परेशान रहता था क्योंकि एक तो वैसे ही चाय बड़ी सस्ती होती थी।
और वैसे ही में उसके कुछ मुफ्त खोर दोस्त आ जाते थे जो फ्री की चायें पीने में शौक रखते थे। और कभी कभी छोटे बच्चे और भूखे प्यासे इंसान आ जाते थे। तो दिनेश उन्हें ऐसे में मुफ्त में चाय दे दिया करता था। ऐसे में उसको बहुत नुकसान हो जाए करता था।
इस बात से बहुत परेशान रहने लगा वह अपनी पत्नी से बोला यह लो सुमन इतनी मेहनत करने के बाद आज इतने ही पैसे मिले हैं। दिनेश बोला एक तो ऐसे में ही कमाई नहीं होती है और जब कमाई होती है तो मेरे मुफ्त खोर दोस्त आ जाते है।
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वह अपने दुकान की सारी दास्तान अपनी पत्नी से बताता है कि कभी कभी छोटे बच्चे या फिर भूखे प्यासे लोग आ जाते हैं तो दया में, मैं उन्हें मुफ्त में चाय की एक प्याली दे दे देता हूं।
जिससे मेरी दुकान में बहुत नुकसान होता है एक चाय में ₹1 की कमाई होती है और इनकी वजह से सब बराबर हो जाता है उसी वक्त दिनेश की पत्नी सुमन बोलती है कि कोई नहीं जी भूखे प्यासे को चाय पिलाते हो तो पुण्य का काम करते हो।
उसी समय दिनेश ने बोला कि वह तो ठीक है वह तो मैं भी समझ रहा हूं कि भूखे प्यासे को हमेशा खिलाना पिलाना चाहिए लेकिन मैं बहुत परेशान हूं जो मेरे मुफ्त खोर मित्र हैं जो मेरी मेहनत को नहीं समझते हैं।
उसी वक्त उसकी पत्नी कहती है कि यह समझ लीजिए कि आपके मुफ्त खोर दोस्त अपने नसीब का खाते हैं आप चिंता मत करिए भगवान हमें इसका फल अवश्य देगा। अभी सुमन ने बोला कि आइए बैठिए मैं आपका खाना लगा देती हूं।
चाय की बेड़ी एक ऐसी जगह है जहां सब लोग इकट्ठे होकर अपने दुख सुख की बातें करते हैं और चाय पिलाने वाला दिनेश चाय पिलाते वक्त सबकी दुख दर्द की बातें सदैव सुनता रहता था। एक दिन उसकी बेड़ी पर दो व्यक्ति चाय पीने आते है। एक का नाम भोला था। और दूसरे व्यक्ति का नाम हरी था।
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दोनो ने दिनेश से एक एक कप चाय का प्याला मांगा दिनेश ने दोनों के लिए चाय बनानी शुरू कर दी तभी हरि ने भोला से पूछा कि क्या बात है भोला कुछ परेशान से लग रहे हो तभी भोला ने जवाब दिया हां यार बीवी की तबीयत बहुत खराब है।
और डॉक्टर के पास जाने के लिए पैसे नहीं है तभी हरी बोलता है कि हां यार मेरी भी पेमेंट अभी नहीं आई है तो मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता हूं तुम एक काम करो तुम दिनेश भाई से पूछो क्या पता वह तुम्हारी मदद कर सके।
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क्योंकि वह दुकान चलाता है और उसकी रोजाना की आय होती है तभी भोला, दिनेश से पूछता है कि दिनेश भाई क्या तुम मुझे ₹500 दे दोगे मुझे अपनी बीवी को डॉक्टर को दिखाना है मेरी पेमेंट अभी नहीं आई परसो मेरी पेमेंट आ जाएगी तो मैं तुम्हें लौटा दूंगा।
दिनेश चाय वाला बहुत ही दयालु व्यक्ति है उससे यह सब सुना नहीं गया और उसने तुरंत बिना कुछ कहे भूला को ₹500 दे दिया और बोला कि कोई नहीं जब तुम्हारे पास हो जाए तब तुम आराम से इन पैसों को वापस कर देना।
अभी जाओ और अपनी बीवी का डॉक्टर से इलाज कराओ वह बहुत जरूरी है दिन बीता परसों का दिन आया और वह व्यक्ति दुबारा दुकान पर आया और उसने ₹500 दिनेश चाय वाले को वापस कर दिया जो उसने उस से उधार लिए थे।
दिनेश जैसे ही भोला से ₹500 लेकर अपने गल्ले में रखने ही वाला था की ठीक उसी समय एक आदमी दुकान पर और आ गया। और उसने बोला कि दिनेश भाई हरी मुझको बता रहा था कि आपने भोला को ₹500 नगद देकर उसकी मदद की थी।
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मैं भी बहुत परेशान हूं कृपया मेरी भी मदद कर दो मैं कल शाम को पैसे वापस कर दूंगा। तभी दिनेश ने पूछा कि तुम्हें कितने पैसे चाहिए बताओ तो रामू ने बोला कि मुझे ₹300 चाहिए और फिर रामू पैसे लेकर वहां से चला जाता है।
अगले दिन शाम को रामू सचमुच ₹300 लेकर वापस आता है और दिनेश को पैसे लौटा देता है और दिनेश उससे पैसे लेकर वापस गल्लेे में रख देता है और उसे एक कप चाय का प्याला देता है।
दोनों में गपशप हो ही रही थी कि वहां एक आदमी रोता सा पहुंचता है और बोलता है कि दिनेश भाई मुझे भोला ने भेजा है प्लीज मुझे हजार रुपए दे दो मुझे बहुत जरूरत है नहीं तो मैं मर जाऊंगा परसों मैं तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगा। दिनेश भाई प्लीज।
यह सब देखकर दिनेश परेशान हो गया आखिरकार उसने बोल ही दिया कि मैंने भोला कि तो सिर्फ मदद की थी मेरे पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि मैं सबकी मदद कर सकूं तभी वह आदमी बोलता है कि यार दिनेश भाई ऐसा मत कहो नहीं तो मैं मर जाऊंगा।
मैं तुम्हारे पास बड़ी उम्मीद लेकर आया था प्लीज ऐसा मत कहो प्लीज उस आदमी की हालत देखकर और उसका रोना देखकर दिनेश पिघल जाता है और कहता है। ठीक है! ठीक है!
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रो मत मैं तुम्हें पैसे देता हूं दिनेश अपने गल्ले से हजार रुपे निकालता है और उस व्यक्ति को दे देता है तभी दिनेश मन ही मन डरता भी है कि कहीं उसका मेहनत से कमाया हुआ इतना पैसा डूब ना जाए परेशान भी क्यों ना हो वह आदमी इतनी मेहनत करता है और चाय वाले के लिए हजार रुपए कितनी बड़ी रकम होती है या हम सब जानते हैं।
निर्धारित दिन बाद व्यक्ति वापस आता है और दिनेश को ₹100 की कुछ नोटे देता है और जब दिनेश उसको गिनता है तो वह 12 सौ रुपए होते हैं। तभी दिनेश बोलता है कि यह तो 1200 और मैंने तुम्हें तो सिर्फ हजार रुपए दिए थे।
आपने शायद मुझ को ₹200 ज्यादा दे दे दिए हैं यह लीजिए आप अपने ₹200 अधिक पैसे वापस ले लीजिए तभी वह व्यक्ति बोलता है कि दिनेश भाई मुझे पता है या मैंने आपको इनाम में दिया है क्योंकि आपने मेरी एम वक्त पर मदद की थी।
यह मेरी तरफ से आपके लिए तोहफा है लेकिन दिनेश उन पैसों को लेने से इंकार कर देता है लेकिन वह व्यक्ति जोर डालकर कहता है कि दिनेश भाई आप यह पैसे रख लो मैं अपने स्वेच्छा से आपको दे रहा हूं।
और कहने लगा कि अगर मुझे फिर जरूरत पड़ी तो मैं आपसे वापस उधार ले लूंगा वहां खड़े अन्य लोग भी बोले लगे ठीक है दिनेश भाई ले लो कोई बात नहीं होता है। सबकी बातें सुनकर दिनेश बोला अच्छा ठीक है भाई मैं आपकी यह 200 रख लेता हूं।
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मैं आपके पैसों को सुरक्षित रख देता हूं जब आपको जरूरत पड़े तो आप मेरे से मांग लेना और वह अपने घर वापस जाता है लेकिन आज दिल से कुछ अलग था आज दिनेश के हाथों में जलेबी का थैला था।
सुमन जलेबी देखते ही खुश हो गई और कहने लगे कि मेरी पसंद की जलेबी अरे वाह मैं 4 महीनों से नहीं खाई हूं और उसकी बीवी कहती कि लगता है याद मुद्दल के साथ कमाई भी हुई है तभी दिनेश कहता है अरे कमाई ही नहीं 200 एक्स्ट्रा रुपए भी मिले है।
यह देखो यह सुनते ही सुमन पूछ पड़ती है कि ₹200 यह कैसे तभी दिनेश अपने बीवी को पूरी कहानी सुनाता है कि मेरे पास एक व्यक्ति आया था उसको हजार रुपए की आवश्यकता थी मैंने उसकी एन वक्त पर मदद किया था तो वह व्यक्ति ने खुश होकर मुझे यह दो सौ रुपए एक्स्ट्रा दिए और बोला कि यह मेरे तरफ से आपके लिए इनाम है।
आज बहुत दिन बाद दिनेश नहीं अपनी बीवी के चेहरे पर खुशी देखी थी दोनों बहुत खुश थे और दिनेश तो इतना खुश था कि उसे रात भर नींद ही नही आई । वह सोचता रहा कि, मेरी चाय की रेडी पर रोज आकर अपने दुख का रोना रोते रहते है।
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अगर मैं इसी तरह सबकी मदद करता रहू और सब मुझे कुछ एक्स्ट्रा पैसे देते रहे तो मेरी कमाई का एक नया इंतेजाम हो जयेगा। कास ऐसा हो, यह सोच कर वह सो जाता है। और अगली सुबह दुकान के लिए निकल पड़ता है।
लेकिन आज नजारा कुछ अलग था। वह चाय बनाते बनाते लोगों के बातों पर ज्यादा ध्यान देता था कुछ व्यक्ति दिनेश से मदद मांगते तो कुछ को दिनेश्वर मदद देने की पेशकश करता था।
धीरे धीरे लोगो को पता चलता गया कि दिनेश चायवाला लोगो को पैसे देता है और बदले में कुछ रकम ज्यादा ले लेत है लेकिन समय पर मदद करता है। वह अपने आस पास के नगर में प्रचलित हो गया।
अब इनाम वाली बात चार्ज में बदल गयी, लोग आपस मे गपसप करते कि दिनेश चायवाला लोगो की मदद करता है और बदले में एक छोटी रकम साथ ही वपस लेता है। अब दिनेश एक्स्ट्रा मील पैसो को अपने जेब मे रखता जाता।
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धीरे धीरे दिनेश की जेब दोपहर तक भर जाती। तो उसने उसके लिए एक अलग से तिजोरी खरीद ली। अब ऐसा समय आ चुका था कि उन पैसों को रखने के लिए तिजोरी की जगह भी कम पड़ने लगी अब दिनेश की छोटी सी चाय की दुकान अब बड़ी सी चाय की दुकान में बदल गई।
लेकिन दिनेश की चाय का धंधा साइड में ही रह गया उसका सबसे अधिक लोकप्रिय धंधा हो चुका था पैसों का लेनदेन या धंधा जोरों शोरों से चल पड़ा अब दिनेश चाय की दुकान पर चाय पीने वालों की संख्या कम और मदद मांगने वालों की संख्या अधिक होने लगी।
तभी पास के गांव से एक व्यक्ति आया जिसका नाम दीनदयाल था उसने दिनेश से कहा कि दिनेश भाई मुझे अपनी बेटी की शादी करनी है मुझे आपसे ₹100000 चाहिए लेकिन हां पैसे वापस करने में मुझे कुछ समय लग जाएगा।
तो दिनेश ने झट से कहा अरे दीनदयाल भाई कोई बात नहीं जब आपके पास हो जाए तब आप मुझे वापस कर देना आपकी बेटी हमारी बेटी है खुशी से शादी करी मेरा आशीर्वाद उसके साथ है और दिनेश अपने तिजोरी से ₹100000 निकालकर दीनदयाल को दे देता है हरीश चाय वाले में ना सिर्फ मदद की भावना थी बल्कि उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा था।
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कुछ दिनों में दिनेश के स्वभाव से सभी लोग परिचित हो गए और और धीरे-धीरे आसपास के चार पांच नगर में उसकी इज्जत के यदि के साथ-साथ उसकी चर्चा भी होने लगी कुछ दिन में मुखिया का चुनाव होना था तो लोगों ने उस में दिनेश का नाम ही रख दिया।
यह सुनकर दिनेश ने लोगो को बहुत मन किया कि उसको यह सब नही चाहिए। लेकिन लोग नही माने। अब दिनेश को विवश होकर हा करना ही पड़ा। मत पड़ने लगा और दिनेश ने जिन लोगो की जाने अनजाने में मदद की थी उन लोगो ने दिनेश को भारी भरकम वोटो से विजयी बना दिया।
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और उन्होंने दिनेश को अपना मुखिया बनाया। अब दिनेश को मुखिया बने हुए देख चायवाले की पत्नी बहुत खुस हुई। तो वह कहती है कि जी आपने को से जादू कर दिया इन लोगो पर की आप चायवाले से सीधे मुखिया बन गए।
तो दिनेश बोला कि क्या बताऊं सुमन मुझे कुछ नहीं पता लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि इंसान कितना भी छोटा काम क्यों ना करता हो जिंदगी उसे एक मौका जरूर देती है जिससे वह पाकर दिल में तरक्की कर सकता है मेरे पास भी शायद वही मैं आया था और मैंने उसका सही उपयोग किया और मैं आज यहां सब का मुखिया बन गया।
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और अगर इंसान उस मौके का अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करके उस सही समय का फायदा उठा ले तो वह अपनी जिंदगी में जरूर सफल हो सकता है यह सब सुनकर सुमन ने बोला जो भी हो जी हमारा जीवन यापन अब अच्छे से हो जाएगा आपकी मेहनत रंग लाई मैंने आपसे कहा था ना कि आप कर्म करो फल की चिंता ना करें और आदिश्वर ने हमें देखिए किस मुकाम पर ला दिया है।
कहानी से शिक्षा - इंसान को फल से अधिक अपने कर्मों पर विश्वास होना चाहिए और साथ ही साथ उसे अपने सामने किसी भी तरह की अवसर का सदैव सही उपयोग करना चाहिए क्या पता वह किस मोड़ में आपके जिंदगी में एक नया मोड़ ला दे।
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